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आज फिर छत की मुंडेर पर बाजरा फ़ैला दो अनाज के कुछ दाना फ़ैला कर उस रूठी हुई गौरैया को मना लो 💕 राष्ट्रीय भ्रष्टाचार उन्मूलन समिति

हमारे गाँवों, घरों, खेत खलिहानों में फुदकती, पर्यावरण व किसान मित्र हमारी नन्ही दोस्त "गौरैया" जिसे देखकर मन प्रफुल्लित हो जाता है ,आज ये विलुप्त होने की कगार पर हैं। आइए #विश्व_गौरैया_दिवस के अवसर पर हम सब मिलकर इन्हें बचाने के लिए संकल्पित हो
चुन चुन करती आई चिड़िया
दाल का दाना लाई चिड़िया
मोर भी आया, कौवा भी आया,
चूहा भी आया, बन्दर भी आया
(खौं, खौं, खौं खौं खौं)
#विश्व_गौरैया_दिवस🐤 #लेखनी ✍️
🎬 अब दिल्ली दूर नहीं (1957)
🖋️ शैलेंद्र 🎵 दत्ताराम वाडकर
🎤 मो. रफ़ी 🎞️ याकूब, मास्टर रोमी
पशु-पक्षियों का संरक्षण हम सबकी जिम्मेदारी

बताते चलें कि गौरैया संरक्षण की दिशा में पहला महत्वपूर्ण कदम वर्ष 2010 में तब उठाया गया था जब ‘‘नेचर फॉरएवर सोसायटी’’ के अध्यक्ष मोहम्मद दिलावर के विशेष प्रयासों से पहली बार 20 मार्च को ‘विश्व गौरैया दिवस’ मनाया गया था। तभी से हर वर्ष गौरैया के संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए यह दिवस मनाया जाता है। पक्षी विशेषज्ञों के अनुसार विश्वभर में गौरैया की 26 प्रजातियां हैं, जिनमें से पांच भारत में देखने को मिलती हैं। वे कहते हैं कि पशु पक्षियों का संरक्षण हम सबकी जिम्मेदारी है। अपने-अपने घरों पर एक घोंसला जरूर लगाएं और अपने-अपने घरों की छतों पर चिड़ियों के लिए भोजन व पानी अवश्य रखें। साथ ही अपने बच्चों को भी इसके लिए प्रेरित करें। अपने घर के आस-पास घने छायादार पेड़ लगायें। ताकि गौरैया या अन्य पक्षी उस पर अपना घोसला बना सकें। बरामदे या किसी पेड़ पर किसी पतली छड़ी या तार से आप इसके बैठने का अड्डा भी बना सकते हैं।

गौरैया संरक्षण में जुटे हैं पक्षी प्रेमी

हर्ष की बात है कि आज देश भर में बड़ी संख्या में पक्षी प्रेमी गौरैया संरक्षण के पुनीत अभियान में जुटे हुए हैं। इनमें प्रमुख हैं वाराणसी के गोपाल कुमार। ‘वीवंडर फाउंडेशन’ के संस्थापक गोपाल कुमार के मुताबिक उनकी संस्था के पिछले छह साल के अनथक प्रयासों से गौरैया फिर से लोगों के घर-आंगन में वापस आने लगी हैं। उनकी संस्था को गौरैया संरक्षण के लिए वर्ष 2019 में राष्ट्रीय गौरव पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। गोरखपुर के बेलघाट इलाके के रहने वाले सुजीत कुमार और उनका परिवार भी डेढ़ दशक से अधिक समय से गौरैया संरक्षण में जुटा हुआ है। उनका आवास सैकड़ों गौरैया की शरणस्थली बन चुका है। अपने अनूठे गौरैया प्रेम के कारण वे क्षेत्र में ‘स्पैरोमैन’ नाम से जाने जाते हैं। गाजीपुर के रहने वाले पर्यावरणविद कृष्णानंद राय गौरैया पर लिखी अपनी स्वरचित कविता का पाठ कर लोगों को इस विलुप्त होती पक्षी के बारे में जागरूक करने में जुटे हैं।

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